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 चुनाव में सोशल मीडिया बना चुनौती 

जबलपुर। पहले जहां किसी प्रत्याशी पर आरोप लगाना के लिये दूसरे प्रत्याशी या उसके समर्थक को १० बार सोचने पड़ता था. चुनावों के दौरान कुछ भी कहने से पहले शब्दों को तोलना पड़ता था. आज सोशल मीडिया के युग ने बहुत कुछ बदल दिया. अब पेâक पेâसबुक आईडी से दुष्प्रचार हो रहा है. फर्जी सिम कार्ड से वाट्सअप पर झूठ वायरल किया जा रहा है. तो यूट्यूब विज्ञापन पर मामूली खर्च कर गलत वीडियो पूरे शहर में पैâलाया जा रहा है. न कोई लगाम लगाने वाला है, न कोई सत्यापन करने वाला.  सोशल मीडिया का दुरुपयोग इस बार नगर निगम चुनाव में बड़ी चुनौति बनकर आया है. जहां तकनीक ने प्रचार को आसान किया है. तो वहीं सिक्के का दूसरा पहलू यह है की झूठा प्रचार आसान हो गया. जिसपर लगाम लगाने में सभी सरकारी एजेन्सियों के पसीने छूट रहे हैं. जिसके गंभीर और दूरगामी परिणाम नजर आना शुरु हो गये हैं.
पेâक आईडी का जोर……
पेâसबुक पर जहां प्रत्याशी एवं उनके समर्थक अपनी रियल आईडी से सभ्य और संयमित पोस्ट करते हैं. तो दूसरी तरफ फर्जी आईडी बनाकर कुछ समर्थक सारी सीमाओं को लांघते नजर आ रहे हैं. घटिया आरोप, गंदे शब्द, आरोप प्रत्यारोप का जरिया, यह पेâक आईडी बन रही हैं. जब तक पोस्ट डिलीट होती है, तब तक सैंकड़ों लोगों तक पहुंच चुकी होती है. वहीं सोशल मीडिया वंâपनियां कितना भी दावा करें, लेकिन वो ऐसी पोस्ट रोक पाने में पूरी तरह विफल हैं. वहीं इन प्लेटफार्मस पर आईडी बनाना इतना आसान है, कि कोई भी कहीं से भी कितनी भी आईडी बना लेता है. जैसे ही एक पेâक आईडी ब्लॉक होती है, ०५ मिनट में दूसरी तैयार हो जाती है.
फर्जी नम्बरों से खेल………
वॉटसअप को दूषित प्रचार का साधन बनाकर चुनाव को प्रदूषित करने वाले कम नहीं हैं. फर्जी नम्बरों से वॉट्सअप अकाउंट बनाए जा रहे हैं. उससे अनैतिक पोस्ट, फोटो, वीडियो वायरल की जा रही है. अक्सर वॉटसअप पर गलत चीजें वायरल करने के बाद वॉट्सअप अकाउंट ही डिलीट कर दिया जाता है. नम्बर फर्जी, आईडी बंद, अब पुलिस प्रशासन आरोपी को ढूंढता रह जाता है.
पुलिस की पहुंच से बाहर………
पेâक न्यूज, पोस्ट, गलत फोटो, झूठे वीडियो की इस बार नगर निगम चुनाव में इतनी भरमार है की इस पर लगाम लगाने में पुलिस प्रशासन, सायबर सेल के भी पसीने छूट रहे हैं. जितनी देर में आईपी एड्रेस टै्रक होता है, उतनी देर झूठ वायरल हो चुका होता है. वहीं आरोपी अगर शातिर है तो आईपी एड्रेस, नम्बर आदि भी फर्जी निकलता है. 
खर्च का अनुमान विफल……
प्रिंट मीडिया और न्यूज चैनल आदि के विज्ञापनों में प्रकाशित एवं प्रसारित की जा रही है सामग्री की मानीटरिंग होती है. उसपर खर्च की सीमा निर्धारित है एवं उसकी जांच होती है. लेकिन सोशल मीडिया पर पेड प्रमोशन में वंâटेंट की जांच एवं खर्च की निगरानी सब कुछ बेलगाम है. जो चाहे, दो तीन क्लिक में जिस साम्रगी को वायरल कर दे. कोई पूछने देखने वाला नहीं है. 


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